मेरा वजूद माँग रहा हिसाब

सरिता सेठी

मेरे वजूद ने मुझे नींद से जगाया
और मुझसे पूछा एक सवाल,
करती रही तुम सबका ख्याल,
मेरा भी कर दो ज़रा आज हिसाब।
बहुत सोचा पर जवाब न सूझा
फिर तुनक कर बोला मैंने,
हो तो तुम मेरा ही हिस्सा,
फिर क्यों मांगो मुझसे हिसाब?
मेरा जीवन एक खुली किताब,
सादगी से जिया इसे मैंने,
अपने वजूद को तो बिल्कुल न छुआ है मैंने।
थाम कर चली सदा रिश्तों की डोर,
इन सब के सामने नही तेरा कोई ओर छोर।
फिर क्यों कर तुमको मैं देखूँ,
और क्यों कर तुमको मैं समझूँ।
फिर से बोला मेरा वजूद,
नजर अंदाज़ न करना मुझको
चाहे मैं हूँ तुम्हारे ही भीतर
मेरी अवहेलना कर के तुम
कर बैठोगी अन्याय
बाकी सभी रिश्तों से भी
मैं तो स्वाभिमान तुम्हारा,
क्या जी पाओगी मुझ बिन।
खुद को समझो,वजूद को समझो
नहीं तो खो जाओगी एक दिन
इस दुनिया की भीड़ भाड़ में
न फिर ढूँढ पाओगी खुद को,
स्वार्थ भरी इस दुनिया में।
समझ जाओ अब,
संभल जाओ अब
ढूँढ लाओ अब अपना वजूद।
मेरा वजूद माँग रहा हिसाब।
मेरा वजूद माँग रहा हिसाब।

अभिव्यक्ति – सोच का सैलाब

न रोको मुझको उड़ने दो

सरिता सेठी

हाँ, मैं हूँ उड़ने को तैयार,
खुले आसमान में अपने पंख पसार।
न रोको मुझको उड़ने दो,
नील गगन छू लेने दो।
न लगाओ पहरे हजार,
दे कर देखो मौका एक बार।
मुझमें हैं वो सारी क्षमताएं,
खुद ही कर लूंगी दूर बाधाएं।
देखो तो कर के विश्वास,
दिखा दूंगी मैं हूँ कुछ खास।
न रोको मुझको उड़ने दो,
नील गगन छू लेने दो।

(एक बेटी की चाह)

जीवन का मेला

सरिता सेठी

जीवन है एक मेला,
हर शख्स है जिसमें अकेला।
चारों तरफ नज़रें आते हैं इन्सान,
पर सभी लगते हैं अन्जान।
पहचान है तो केवल स्वार्थ से,
दोस्ती है तो स्वार्थ से,
स्वार्थों की पूर्ति करते करते,
व्यक्ति की आँखों से है वो चश्मा गिर चुका है।
जिसमें नज़र आती है इन्सानियत,
जिसमें नज़र आते हैं इन्सानी रिश्ते।
इन्सानियत को जिन्दा रखना है तो,
स्वार्थ को मिटाना होगा,
रिश्तों को बचाना होगा।
फिर जीवन बन जाएगा ऐसा मेला,
जिसमें रहेगा न तू अकेला

हिन्दी और माँ

सरिता सेठी

हिन्दी की स्थिति बिल्कुल माँ जैसी है। माँ जिस प्रकार बच्चे को पाल पोस कर बढ़ाया करती है। ठीक उसी प्रकार हिन्दी भाषा ने भी हम सब का पोषण किया है। बच्चा बड़ा होकर अंग्रेजी विद्यालय जाता है और अपनी मातृभाषा से नज़रें चुराने लगता है। बड़ा होने पर एक दिन अंग्रेजी दुल्हन घर ले आता है। जैसे माँ विदेशी बहु को अपना लेती है उसी प्रकार हिन्दी भाषा भी अंग्रेजी के शब्दों को आत्मसात कर लेती है। बेटा धीरे धीरे अंग्रेजी दुल्हन में रम जाता है और माँ को भूलने लगता है। अब तो माँ की उपस्थिति केवल तीज-त्यौहार पर ही होती है। हमारी मातृभाषा हिन्दी का हाल भी माँ जैसा है। हम केवल विशेष अवसरों पर ही हिन्दी को याद करते हैं। परन्तु माँ तो माँ होती है। हम कितना भी उसे तिरस्कृत करें वो अपना प्यार और वात्सल्य सदा अपने बच्चों पर ही लुटाती है।

आओ आज ये प्रण लें कि हिन्दी और माँ दोनों का सम्मान करेंगे।दोनो में से किसी को भी अपमानित नहीं होने देंगे।

दिल से करें हिन्दी का सम्मान

“दिल से करें हिन्दी का सम्मान”पढ़ना जारी रखें

माँ जैसी हो गई हूँ

-सरिता सेठी

नीलू बहुत ही अल्हड़ लङकी थी। हमेशा मस्त रहने वाली। एक भरे पूरे परिवार में रहती थी। एकदम मस्त और बिंदास। भाई बहनों में सबसे छोटी होने के कारण सबकी लाडली बन गई थी। अपनी माँ को हर पल काम करते देखती। माँ उसे समय समय पर सीख देती रहती। वो अल्हड़ लङकी कुछ सुनती कुछ अनसुना कर देती। समय पंख लगा कर उड़ता रहा।समय बदला, अब नीलू खुद भी दो बच्चों की माँ है। माँ ने भी गृहस्थी चलाने में पूरा सहयोग दिया। आज माँ साथ नहीं है, परन्तु माँ की हर बात उसे याद है। माँ की कही अनकही सभी बातें याद हैं।मजे की बात तो यह है कि माँ की जो बातें बेकार और बेमानी लगती थी, अब वो सब अर्थपूर्ण हो गई हैं। माँ की जो आदतें नापसंद थी, आज वही आदतें अपने में महसूस करने लगी है। आज हर बात पर माँ का ही किस्सा याद आता है। जिन आदतों पर नाक चिड़ाती थी, न जाने कब उसमें खुद में ही उजागर होने लगी। अब उसे ये अहसास हो गया है कि वो तो बिल्कुल अपनी माँ जैसी हो गई है।
क्या आपको भी ऐसा महसूस होता है?
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सागर

इस कविता की रचना आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व की गई थी।अपने जीवन साथी को
अपने नाम के अनुरूप ही अपनी कल्पना में “सागर” नाम दिया था।

– सरिता सेठी

अगर मैं सरिता हूँ
तो तुम एक सागर हो
सागर से मिलकर
सरिता का आस्तित्व समाप्त हो जाता है
लेकिन मैं चाहती हूँ कि
इस सरिता का सागर ऐसा हो
जो कि सरिता का आस्तित्व मिटने न दे
उसकी एक अलग पहचान बनाए रखे
तुम सरिता को उसके वास्तविक रूप में ही ग्रहण कर लो
तो सरिता भी सागर में पूर्णतया विलीन हो जाएगी
फिर कोई नहीं जान पाएगा कि
अशुद्धिया सरिता की है या सागर की
दोनो मिलकर
एक दूसरे की अशुद्धियों को दूर कर
एक ऐसा वातावरण तैयार करें कि
इस सरिता सागर का मिलन
दुनियां में एक मिसाल बन जाए।

25 वर्षो का सफर

– सरिता सेठी

#सिल्वर जुबली # मेरे हमसफ़र

बहुत आसान तो नहीं था ये सफर ,पर
तुम्हारे साथ मुश्किल भी नहीं लगा ये सफर,
मेरी हर परेशानी का निकाला हल,
मेरी मुश्किल को दूर किया तुमने हर पल,
पग पग पर सदा दिया मेरा साथ,
बिना जाने ही मदद के लिए बढाया सदा हाथ,
मेरे जीवन के सारे कष्ट हरे,
लेकिन तुम सदा ही रहे मेरी समझ से परे,
तुम्हें समझने का जितना भी किया यत्न,
बेकार ही रहे मेरे सारे प्रयत्न,
हमारी जीवन की माला में जुड़ी एक नई कड़ी,
जब हमारे जीवन में आई हमारी नन्ही परी,
हम सब के जीवन को इसने रोशन किया,
सभी की लाडली बन गई छोटी सी रिया,
हमारी माला में जुङा एक नया मनका,
जिसे पाकर तृप्त हुआ तन मन सबका,
“उत्सव ” को पाकर जीवन भी हुआ उत्सव सा,
जीवन भी लगने लगा खुशियों से भरा सा,
छोटी छोटी खुशियों को जीते चले,
एक दूसरे के साथ आगे बढ़ते चले,
प्रोफैशनल कैरियर में भी सदा दिया मेरा साथ,
आत्मविश्वास जगा कर हर पल दिया हाथ में हाथ,
मैं जीवन की राह पर आगे बढ़ती रही,
हर पल तुम्हारे साथ को भी महसूस करती रही,
जीवन में हर कदम पर मेरा साथ निभाया,
मैं हूँ कुछ खास, ये अहसास तुमने सदा कराया,
मेरी छोटी छोटी खुशियों को पूरा करने का किया सदा प्रयास,
मेरी सिंगिंग और मेरे लेखन को बताया सदा खास,
ऐसा नहीं है कि हमारे बीच नहीं हुआ कोई टकराव, पर
तुम्हारी केयरिंग हैबिट भर देती है सारे घाव,
विचारों का अन्तर तो सदा ही पाया,
जिन्दगी को अपने तरीके से जीने का ढंग भी सिखाया,
कभी कभी कहती हूँ कि पंडित ने राशि गलत मिला दी,
दो अलग विचारों वाले व्यक्तियों की शादी करवा दी।
घर में टिक कर रहना तुम्हें खलता है ऐसे,
एक म्यान में दो तलवारें न टिकती हों जैसे।
परन्तु फिर भी तुम्हारे रूप में एक आदर्श जीवन साथी को है पाया,
सरिता-सागर के मिलन को सार्थक होते हुए पाया।
मेरी कविता “सागर ” के आदर्श पात्र हो तुम,
सरिता के जीवन को अपने आप में समेटने वाले सागर हो तुम।
कठिन पथ पर सदा मेरा साथ देते रहना,
मेरे जीवन को यूँ ही सदा महकाते रहना।

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