बाट देखती रहती हैं बस,
देहरी पर दो बूढ़ी आँखे।
आएगें जब मिलने उनसे,
उनकी ही आँखो के तारे।
फुर्सत निकाल कर व्यस्त जीवन से,
माता-पिता पर स्नेह लुटाने।
एक बार आते हैं फिर वो,
कितने हैं एहसान गिनाते।
भूल जाते हैं कि कैसे
माता-पिता ने भी
आँखो में है काटी रातें।
अब वो आँखे हो गई बूढ़ी,
तकते तकते राह भी उनकी।
बाट देखती रहती हैं बस,
देहरी पर दो बूढ़ी आँखे।

