जीवन का मेला

सरिता सेठी

जीवन है एक मेला,
हर शख्स है जिसमें अकेला।
चारों तरफ नज़रें आते हैं इन्सान,
पर सभी लगते हैं अन्जान।
पहचान है तो केवल स्वार्थ से,
दोस्ती है तो स्वार्थ से,
स्वार्थों की पूर्ति करते करते,
व्यक्ति की आँखों से है वो चश्मा गिर चुका है।
जिसमें नज़र आती है इन्सानियत,
जिसमें नज़र आते हैं इन्सानी रिश्ते।
इन्सानियत को जिन्दा रखना है तो,
स्वार्थ को मिटाना होगा,
रिश्तों को बचाना होगा।
फिर जीवन बन जाएगा ऐसा मेला,
जिसमें रहेगा न तू अकेला

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