हिन्दी और माँ

सरिता सेठी

हिन्दी की स्थिति बिल्कुल माँ जैसी है। माँ जिस प्रकार बच्चे को पाल पोस कर बढ़ाया करती है। ठीक उसी प्रकार हिन्दी भाषा ने भी हम सब का पोषण किया है। बच्चा बड़ा होकर अंग्रेजी विद्यालय जाता है और अपनी मातृभाषा से नज़रें चुराने लगता है। बड़ा होने पर एक दिन अंग्रेजी दुल्हन घर ले आता है। जैसे माँ विदेशी बहु को अपना लेती है उसी प्रकार हिन्दी भाषा भी अंग्रेजी के शब्दों को आत्मसात कर लेती है। बेटा धीरे धीरे अंग्रेजी दुल्हन में रम जाता है और माँ को भूलने लगता है। अब तो माँ की उपस्थिति केवल तीज-त्यौहार पर ही होती है। हमारी मातृभाषा हिन्दी का हाल भी माँ जैसा है। हम केवल विशेष अवसरों पर ही हिन्दी को याद करते हैं। परन्तु माँ तो माँ होती है। हम कितना भी उसे तिरस्कृत करें वो अपना प्यार और वात्सल्य सदा अपने बच्चों पर ही लुटाती है।

आओ आज ये प्रण लें कि हिन्दी और माँ दोनों का सम्मान करेंगे।दोनो में से किसी को भी अपमानित नहीं होने देंगे।

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