-सरिता सेठी
नीलू बहुत ही अल्हड़ लङकी थी। हमेशा मस्त रहने वाली। एक भरे पूरे परिवार में रहती थी। एकदम मस्त और बिंदास। भाई बहनों में सबसे छोटी होने के कारण सबकी लाडली बन गई थी। अपनी माँ को हर पल काम करते देखती। माँ उसे समय समय पर सीख देती रहती। वो अल्हड़ लङकी कुछ सुनती कुछ अनसुना कर देती। समय पंख लगा कर उड़ता रहा।समय बदला, अब नीलू खुद भी दो बच्चों की माँ है। माँ ने भी गृहस्थी चलाने में पूरा सहयोग दिया। आज माँ साथ नहीं है, परन्तु माँ की हर बात उसे याद है। माँ की कही अनकही सभी बातें याद हैं।मजे की बात तो यह है कि माँ की जो बातें बेकार और बेमानी लगती थी, अब वो सब अर्थपूर्ण हो गई हैं। माँ की जो आदतें नापसंद थी, आज वही आदतें अपने में महसूस करने लगी है। आज हर बात पर माँ का ही किस्सा याद आता है। जिन आदतों पर नाक चिड़ाती थी, न जाने कब उसमें खुद में ही उजागर होने लगी। अब उसे ये अहसास हो गया है कि वो तो बिल्कुल अपनी माँ जैसी हो गई है।
क्या आपको भी ऐसा महसूस होता है?
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