– सरिता सेठी
कैद है तू अपनी ही सोच की बेङियो में
नारी तू तो सरिता है
क्या सरिता को भी कोई बांध पाया है
सरिता का शांत रूप देखा है सभी ने
जबकि उसमें समाया है अनन्त तूफान
सरिता जहाँ शांत रूप से बहती है
उसकी राह बदलता जमाना है
लेकिन जब अपने रौद्र रूप में आती है
तो कोई नहीं रोक पाता है
शांत रूप में बहते बहते
सभी उथल पुथल को सहते सहते
कैद हो गई है तू अपनी ही सोच की बेङियो में
तुझे नहीं मचाना है कोई शोर
अपनी इस अवस्था का नहीं ढूढना कोई ओर छोर
तुझे तो केवल अपनी इस सुप्तावस्था को जगाना है
अपने आस्तित्व को सही राह दिखाना है
तुझे नहीं बनना है कोई तूफान
नहीं है इसमें तेरी कोई शान
तुझे तो केवल स्वाभिमान से चलना है
अपनी राह की बेङियो को हटाना है
अपने इर्द गिर्द जो जमी गहरी काई है
जिसमें छिप गया है तेरा स्वाभिमान
इस काई को खुरचना है बस
अपने भीतर जलाना है एक ऐसा दीपक
तूफानों से भी जो टकरा जाए
तो तेरा स्वाभिमान रूपी तेल उस दीपक को बुझने न दे
इसके लिए जरूरी है कि खुद को न मिटा
अपनी अलग एक पहचान बना
फिर कोई नहीं बांध पाएगा तुझे
तेरा स्वतंत्र होना आवश्यक है
विचारों की उथल पुथल आवश्यक है
विचारों की उथल पुथल तुझमे शुद्धता लाऐगी
फिर सम्पूर्ण सृष्टि तेरे वास्तविक रूप को देख पाएगी
निकल, मत उलझ संसार की अठखेलियो में
क्योंकि कैद है तू अपनी ही सोच की बेङियो में।
